May 7, 2012
नेहरु, इंदिरा, राजीव
जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि
अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में
पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे। नाते-रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से
कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू राजवंश कि खोज में
सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल
नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक
बहती तवी के किनारे पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया
कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह
कुछ मदद कर सके। अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के पास पहुंचा तो वह
सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम
करने आए हैं क्या? कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक
किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज कि किताब "ए लैम्प फार
इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" उस किताब मे तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा
था, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान थे जिनका असली नाम था
गयासुद्दीन गाजी। इस फोटो को दिखाते हुए हाफीजा ने कहा कि इसकी
पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। नेहरू की
आत्मकथा भी अपने रैक से निकालते हुए एक पेज को पढऩे को कहा। इसमें एक जगह
लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की
बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर
के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि
बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। और
खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ
सिंह और काशीनाथ जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर
नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। नेहरू राजवंश की खोज में
मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर में खोजबीन करने पर
मालूम हुआ। गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था,
असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया
था तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के
सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था।
जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते
थे जो हिन्दू राजाओं-पृथ्वीराज चौहान ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित
छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया।
लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय
यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है
कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगाधर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी
लेकिन तब गंगाधर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं
और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास है ही। यह धर उपनाम
कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है और इसी का अपभ्रंश होते-होते और
धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से
में आमतौर पाया जाने वाला नाम है। लेकिन मोतीलाल ने नेहरू उपनाम चुना ताकि
यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ
यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोगों कि असलियत क्या होती है।
आनंद भवन नहीं इशरत मंजिल: एक कप चाय खत्म हो गयी थी, दूसरी का आर्डर
हाफीजा ने देते हुए के एन प्राण कि पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी निकालने के
बाद एक पन्ने को पढऩे को दिया। उसके अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के
पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। यह तो हम जानते ही हैं कि
जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी
माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। कमला शुरु
से ही इन्दिरा के फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों यह हमें नहीं बताया
जाता। लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे? फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे जो आनन्द
भवन में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था। आनन्द भवन का असली
नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली। मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं
मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का
नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी
तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम
नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान। एक मुस्लिम व्यापारी जो
आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात
में। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज
इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं) घांदी
नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर
फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया
जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है।
इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त
ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया
था। अब आप खुद ही सोचिये एक तन्हा जवान लडक़ी जिसके पिता राजनीति में पूरी
तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हों थोड़ी सी सहानुभूति
मात्र से क्यों ना पिघलेगी? इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इसी
बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म
परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना
बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा
सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को
बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी
रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के
सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। विडम्बना यह
है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा
लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया। खैर, उन
दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक
बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची
नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ. मथाई अपनी
पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (अब भारत में
प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942
में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये
जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल
मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म
के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था।
फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे
और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर
नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी।
1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह
दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। संजय गांधी और इंदिरा:
संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से
मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन
पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका
पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण
मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के
नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में
नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। अफवाहें यह भी है कि संजय गांधी इंदिरा
गांधी के उनके सचिव युनुस खान से संबंधों के सच थे यह बात संजय गांधी को
पता थी। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ।
कहा जाता है मेनका जो कि एक सिख लड़की थी संजय की रंगरेलियों की वजह से
उनके पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी फि र उनकी
शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर मानेका किया गया क्योंकि इन्दिरा गाँधी को
यह नाम पसन्द नहीं था। फिर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं क्योंकि उस
जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ एक तौलिये में विज्ञापन
किया था। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल
करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कामो पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला
और उसे अपनी मनमानी करने कि छूट दी। सन्यासिन का सच: एम.ओ.मथाई
अपनी पुस्तक के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं - 1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन
दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह संस्कत की विद्वान थी और
कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। वह भारतीय पुरालेखों और
सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.
उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस
सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और
काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई
के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा वह बहुत ही जवान
खूबसूरत और दिलकश थी। एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे
मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने
भी उसे उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं किसी के ढूँढे
से नहीं मिलीं। नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट से एक
सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक
युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म
दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद
ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी। उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी
में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों
का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। मथाई लिखते हैं।
मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की
मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और
उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं क हा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस
बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ
चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर
नहीं था। नेहरू राजवंश की कुंडली जानने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो शाम
पांच बज गए थे, हाफीजा से मिली ढेरों प्रमाणिक जानकारी के लिए शुक्रिया अदा
करना दोस्ती के वसूल के खिलाफ था, इसलिए फिर मिलते हैं कहकर चल
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे मे�... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
that when this river dried up, these Brahmins gotscattered. There is a tradition that quite a largesection of this uprooted community settled in theWestern Konkan coast of the present state ofMaharashtra, where they still hold together sociallyand call themselves "Saraswat Brahmins". Othersmoved further North into the Valley of Kashmir and,as the story goes, settled there after securing thepermission of the Naga tribes who then ruled overthis region. So, in the course of centuries, whilehol... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Read, study, and spread this message among Brahmin. Points to consider
for Brahmin
1) Patriotism: In a socially diffused
country like India; where every social group is involved in selfish agenda;
patriotism by Brahmin, who are victims of hatred, persecution and
discrimination on ethnic ground is waste of energy and diversion from problem
of Brahmin themselves. So far so many Brahmin sacrificed their family welfare,
property and lives for this cause, what Br... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Definition Hindu
Brahmin
A
person is said to a brahmin if he is born to a brahmin family but there is more
to the “definition” than just this inheritance by birth. Varna classification clearly states that the
aforesaid condition is the only possible scenario for being a brahmin but
the sacred texts and religious books have some other stories to tell.
A brahmin kid needs to fulfil some standard conditions and
rituals and thereafter he is allowed to join in the social status after str... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
I N D U S T R Y
Sir M. Visvesvaraya (1861-1962)
who coined the phrase ‘ Industrialize or perish’, and who as the Dewan (Prime
Minister) of the princely state of Mysore, was responsible for starting up
several industries, in the early twentieth century, is considered a
Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Jnanadeva
Marathi. Poet and saint. 13th century.
Vidyapati
Mythili. Poet. 14th century.
Eknath
Marathi. Poet and saint. 16th
century.
Modern Literature
In recent times, especially in the preceding two centuries,
hundreds of authors and thousands of works, in all the major Indian languages,
have enriched the Indian literary firmament. More information will be included
in future updates, after complete research.
However, for starters, are included the names of authors wh... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
| |
May 7, 2012
नेहरु, इंदिरा, राजीव
जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि
अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में
पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे। नाते-रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से
कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू राजवंश कि खोज में
सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल
नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक
बहती तवी के किनारे पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया
कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह
कुछ मदद कर सके। अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के पास पहुंचा तो वह
सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम
करने आए हैं क्या? कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक
किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज कि किताब "ए लैम्प फार
इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" उस किताब मे तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा
था, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान थे जिनका असली नाम था
गयासुद्दीन गाजी। इस फोटो को दिखाते हुए हाफीजा ने कहा कि इसकी
पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। नेहरू की
आत्मकथा भी अपने रैक से निकालते हुए एक पेज को पढऩे को कहा। इसमें एक जगह
लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की
बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर
के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि
बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। और
खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ
सिंह और काशीनाथ जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर
नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। नेहरू राजवंश की खोज में
मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर में खोजबीन करने पर
मालूम हुआ। गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था,
असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया
था तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के
सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था।
जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते
थे जो हिन्दू राजाओं-पृथ्वीराज चौहान ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित
छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया।
लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय
यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है
कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगाधर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी
लेकिन तब गंगाधर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं
और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास है ही। यह धर उपनाम
कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है और इसी का अपभ्रंश होते-होते और
धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से
में आमतौर पाया जाने वाला नाम है। लेकिन मोतीलाल ने नेहरू उपनाम चुना ताकि
यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ
यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोगों कि असलियत क्या होती है।
आनंद भवन नहीं इशरत मंजिल: एक कप चाय खत्म हो गयी थी, दूसरी का आर्डर
हाफीजा ने देते हुए के एन प्राण कि पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी निकालने के
बाद एक पन्ने को पढऩे को दिया। उसके अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के
पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। यह तो हम जानते ही हैं कि
जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी
माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। कमला शुरु
से ही इन्दिरा के फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों यह हमें नहीं बताया
जाता। लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे? फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे जो आनन्द
भवन में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था। आनन्द भवन का असली
नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली। मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं
मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का
नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी
तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम
नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान। एक मुस्लिम व्यापारी जो
आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात
में। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज
इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं) घांदी
नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर
फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया
जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है।
इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त
ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया
था। अब आप खुद ही सोचिये एक तन्हा जवान लडक़ी जिसके पिता राजनीति में पूरी
तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हों थोड़ी सी सहानुभूति
मात्र से क्यों ना पिघलेगी? इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इसी
बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म
परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना
बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा
सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को
बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी
रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के
सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। विडम्बना यह
है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा
लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया। खैर, उन
दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक
बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची
नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ. मथाई अपनी
पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (अब भारत में
प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942
में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये
जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल
मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म
के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था।
फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे
और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर
नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी।
1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह
दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। संजय गांधी और इंदिरा:
संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से
मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन
पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका
पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण
मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के
नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में
नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। अफवाहें यह भी है कि संजय गांधी इंदिरा
गांधी के उनके सचिव युनुस खान से संबंधों के सच थे यह बात संजय गांधी को
पता थी। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ।
कहा जाता है मेनका जो कि एक सिख लड़की थी संजय की रंगरेलियों की वजह से
उनके पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी फि र उनकी
शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर मानेका किया गया क्योंकि इन्दिरा गाँधी को
यह नाम पसन्द नहीं था। फिर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं क्योंकि उस
जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ एक तौलिये में विज्ञापन
किया था। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल
करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कामो पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला
और उसे अपनी मनमानी करने कि छूट दी। सन्यासिन का सच: एम.ओ.मथाई
अपनी पुस्तक के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं - 1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन
दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह संस्कत की विद्वान थी और
कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। वह भारतीय पुरालेखों और
सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.
उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस
सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और
काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई
के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा वह बहुत ही जवान
खूबसूरत और दिलकश थी। एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे
मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने
भी उसे उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं किसी के ढूँढे
से नहीं मिलीं। नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट से एक
सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक
युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म
दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद
ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी। उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी
में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों
का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। मथाई लिखते हैं।
मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की
मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और
उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं क हा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस
बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ
चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर
नहीं था। नेहरू राजवंश की कुंडली जानने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो शाम
पांच बज गए थे, हाफीजा से मिली ढेरों प्रमाणिक जानकारी के लिए शुक्रिया अदा
करना दोस्ती के वसूल के खिलाफ था, इसलिए फिर मिलते हैं कहकर चल
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे मे�... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
that when this river dried up, these Brahmins gotscattered. There is a tradition that quite a largesection of this uprooted community settled in theWestern Konkan coast of the present state ofMaharashtra, where they still hold together sociallyand call themselves "Saraswat Brahmins". Othersmoved further North into the Valley of Kashmir and,as the story goes, settled there after securing thepermission of the Naga tribes who then ruled overthis region. So, in the course of centuries, whilehol... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Read, study, and spread this message among Brahmin. Points to consider
for Brahmin
1) Patriotism: In a socially diffused
country like India; where every social group is involved in selfish agenda;
patriotism by Brahmin, who are victims of hatred, persecution and
discrimination on ethnic ground is waste of energy and diversion from problem
of Brahmin themselves. So far so many Brahmin sacrificed their family welfare,
property and lives for this cause, what Br... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Definition Hindu
Brahmin
A
person is said to a brahmin if he is born to a brahmin family but there is more
to the “definition” than just this inheritance by birth. Varna classification clearly states that the
aforesaid condition is the only possible scenario for being a brahmin but
the sacred texts and religious books have some other stories to tell.
A brahmin kid needs to fulfil some standard conditions and
rituals and thereafter he is allowed to join in the social status after str... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
I N D U S T R Y
Sir M. Visvesvaraya (1861-1962)
who coined the phrase ‘ Industrialize or perish’, and who as the Dewan (Prime
Minister) of the princely state of Mysore, was responsible for starting up
several industries, in the early twentieth century, is considered a
Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Jnanadeva
Marathi. Poet and saint. 13th century.
Vidyapati
Mythili. Poet. 14th century.
Eknath
Marathi. Poet and saint. 16th
century.
Modern Literature
In recent times, especially in the preceding two centuries,
hundreds of authors and thousands of works, in all the major Indian languages,
have enriched the Indian literary firmament. More information will be included
in future updates, after complete research.
However, for starters, are included the names of authors wh... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 7, 2012
नेहरु, इंदिरा, राजीव
जम्मू-कश्मीर में आए महीनों हो गए थे, एक बात अक्सर दिमाग में खटकती थी कि
अभी तक नेहरू के खानदान का कोई क्यों नहीं मिला, जबकि हमने किताबों में
पढ़ा था कि वह कश्मीरी पंडित थे। नाते-रिश्तेदार से लेकर दूरदराज तक में से
कोई न कोई नेहरू खानदान का तो मिलना ही चाहिए था। नेहरू राजवंश कि खोज में
सियासत के पुराने खिलाडिय़ों से मिला लेकिन जानकारी के नाम पर मोतीलाल
नेहरू के पिता गंगाधर नेहरू का नाम ही सामने आया। अमर उजाला दफ्तर के नजदीक
बहती तवी के किनारे पहुंचकर एक दिन इसी बारे में सोच रहा था तो ख्याल आया
कि जम्मू-कश्मीर वूमेन कमीशन की सचिव हाफीजा मुज्जफर से मिला जाए, शायद वह
कुछ मदद कर सके। अगले दिन जब आफिस से हाफीजा के पास पहुंचा तो वह
सवाल सुनकर चौंक गई। बोली पंडित जी आप पंडित नेहरू के वंश का पोस्टमार्टम
करने आए हैं क्या? कश्मीरी चाय का आर्डर देने के बाद वह अपने बुक रैक से एक
किताब निकाली, वह थी रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज कि किताब "ए लैम्प फार
इंडिया- द स्टोरी ऑफ मदाम पंडित।" उस किताब मे तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा
था, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान थे जिनका असली नाम था
गयासुद्दीन गाजी। इस फोटो को दिखाते हुए हाफीजा ने कहा कि इसकी
पुष्टि के लिए नेहरू ने जो आत्मकथा लिखी है, उसको पढऩा जरूरी है। नेहरू की
आत्मकथा भी अपने रैक से निकालते हुए एक पेज को पढऩे को कहा। इसमें एक जगह
लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगाधर थे। इसी तरह जवाहर की
बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत बहादुरशाह जफर
के समय में नगर कोतवाल थे। अब इतिहासकारो ने खोजबीन की तो पाया कि
बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। और
खोजबीन करने पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ
सिंह और काशीनाथ जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर
नाम के व्यक्ति का कोई रिकार्ड नहीं मिला है। नेहरू राजवंश की खोज में
मेहदी हुसैन की पुस्तक बहादुरशाह जफर और 1857 का गदर में खोजबीन करने पर
मालूम हुआ। गंगाधर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर के डर से बदला गया था,
असली नाम तो था गयासुद्दीन गाजी। जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया
था तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के
सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था।
जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं। अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते
थे जो हिन्दू राजाओं-पृथ्वीराज चौहान ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित
छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया।
लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे। उसी समय
यह परिवार भी आगरा की तरफ कूच कर गया। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है
कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगाधर को अंग्रेजों ने रोककर पूछताछ की थी
लेकिन तब गंगाधर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं कश्मीरी पंडित हैं
और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया बाकी तो इतिहास है ही। यह धर उपनाम
कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है और इसी का अपभ्रंश होते-होते और
धर्मान्तरण होते-होते यह दर या डार हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से
में आमतौर पाया जाने वाला नाम है। लेकिन मोतीलाल ने नेहरू उपनाम चुना ताकि
यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे। इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ
यही है कि हमें पता चले कि खानदानी लोगों कि असलियत क्या होती है।
आनंद भवन नहीं इशरत मंजिल: एक कप चाय खत्म हो गयी थी, दूसरी का आर्डर
हाफीजा ने देते हुए के एन प्राण कि पुस्तक द नेहरू डायनेस्टी निकालने के
बाद एक पन्ने को पढऩे को दिया। उसके अनुसार जवाहरलाल मोतीलाल नेहरू के
पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर। यह तो हम जानते ही हैं कि
जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी
माता का नाम था। जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी। कमला शुरु
से ही इन्दिरा के फिरोज से विवाह के खिलाफ थीं क्यों यह हमें नहीं बताया
जाता। लेकिन यह फिरोज गाँधी कौन थे? फिरोज उस व्यापारी के बेटे थे जो आनन्द
भवन में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था। आनन्द भवन का असली
नाम था इशरत मंजिल और उसके मालिक थे मुबारक अली। मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं
मुबारक अली के यहाँ काम करते थे। सभी जानते हैं की राजीव गाँधी के नाना का
नाम था जवाहरलाल नेहरू लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी
तो होते हैं। फिर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था? किसी को मालूम
नहीं, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान। एक मुस्लिम व्यापारी जो
आनन्द भवन में सामान सप्लाई करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात
में। नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया। फिरोज
इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था घांदी (गाँधी नहीं) घांदी
नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था। विवाह से पहले फिरोज गाँधी ना होकर
फिरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था। हमें बताया
जाता है कि फिरोज गाँधी पहले पारसी थे यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है।
इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं। शांति निकेतन में पढ़ते वक्त
ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया
था। अब आप खुद ही सोचिये एक तन्हा जवान लडक़ी जिसके पिता राजनीति में पूरी
तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पड़ी हुई हों थोड़ी सी सहानुभूति
मात्र से क्यों ना पिघलेगी? इंदिरा गांधी या मैमूना बेगम: इसी
बात का फायदा फिरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फुसलाकर उसका धर्म
परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली। नाम रखा मैमूना
बेगम। नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए लेकिन अब क्या किया जा
सकता था। जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने नेहरू को
बुलाकर समझाया। राजनैतिक छवि की खातिर फिरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी
रख ले, यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये बजाय धर्म बदलने के
सिर्फ नाम बदला जाये तो फिरोज खान घांदी बन गये फिरोज गाँधी। विडम्बना यह
है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और सत्य के साथ मेरे प्रयोग नामक आत्मकथा
लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक नहीं नहीं किया। खैर, उन
दोनों फिरोज और इन्दिरा को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक
बार पुन: वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया ताकि उनके खानदान की ऊँची
नाक का भ्रम बना रहे। इस बारे में नेहरू के सेकेरेटरी एम.ओ. मथाई अपनी
पुस्तक प्रेमेनिसेन्सेस ऑफ नेहरू एज (पृष्ठ 94 पैरा 2 (अब भारत में
प्रतिबंधित है किताब) में लिखते हैं कि पता नहीं क्यों नेहरू ने सन 1942
में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये
जाने को अनुमति दी जबकि उस समय यह अवैधानिक था का कानूनी रूप से उसे सिविल
मैरिज होना चाहिये था । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म
के कुछ समय बाद इन्दिरा और फि रोज अलग हो गये थे हालाँकि तलाक नहीं हुआ था।
फिरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे
और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे। तंग आकर
नेहरू ने फिरोज के तीन मूर्ति भवन मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था।
मथाई लिखते हैं फिरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बड़ी राहत मिली थी।
1960 में फिरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी जबकी वह
दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे। संजय गांधी और इंदिरा:
संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था अपने बडे भाई राजीव गाँधी से
मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन
पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका
पासपोर्ट जब्त कर लिया था। ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण
मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के
नाम से बनवाया था, इन्हीं कृष्ण मेनन साहब को भ्रष्टाचार के एक मामले में
नेहरू और इन्दिरा ने बचाया था। अफवाहें यह भी है कि संजय गांधी इंदिरा
गांधी के उनके सचिव युनुस खान से संबंधों के सच थे यह बात संजय गांधी को
पता थी। अब संयोग पर संयोग देखिये संजय गाँधी का विवाह मेनका आनन्द से हुआ।
कहा जाता है मेनका जो कि एक सिख लड़की थी संजय की रंगरेलियों की वजह से
उनके पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी फि र उनकी
शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर मानेका किया गया क्योंकि इन्दिरा गाँधी को
यह नाम पसन्द नहीं था। फिर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं क्योंकि उस
जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ एक तौलिये में विज्ञापन
किया था। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल
करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कामो पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला
और उसे अपनी मनमानी करने कि छूट दी। सन्यासिन का सच: एम.ओ.मथाई
अपनी पुस्तक के पृष्ठ 206 पर लिखते हैं - 1948 में वाराणसी से एक सन्यासिन
दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था। वह संस्कत की विद्वान थी और
कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे। वह भारतीय पुरालेखों और
सनातन संस्कृत की अच्छी जानकार थी। नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.
उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस
सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए। चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और
काम बहुत था। नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये। मथाई
के शब्दों में एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा वह बहुत ही जवान
खूबसूरत और दिलकश थी। एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे
मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये नेहरू ने
भी उसे उत्तर दिया और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं किसी के ढूँढे
से नहीं मिलीं। नवम्बर 1949 में बेंगलूर के एक कान्वेंट से एक
सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया। उसने कहा कि उत्तर भारत से एक
युवती उस कान्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म
दिया। उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद
ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी। उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी
में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं पत्रों
का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया। मथाई लिखते हैं।
मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफी कोशिश की लेकिन कान्वेंट की
मुख्य मिस्ट्रेस जो कि एक विदेशी महिला थी बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और
उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं क हा लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस
बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कथोलिक संस्कारो में बड़ा करूँ
चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो लेकिन विधाता को यह मंजूर
नहीं था। नेहरू राजवंश की कुंडली जानने के बाद घड़ी की तरफ देखा तो शाम
पांच बज गए थे, हाफीजा से मिली ढेरों प्रमाणिक जानकारी के लिए शुक्रिया अदा
करना दोस्ती के वसूल के खिलाफ था, इसलिए फिर मिलते हैं कहकर चल
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
गुजरात दंगे का सच आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे मे�... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
that when this river dried up, these Brahmins gotscattered. There is a tradition that quite a largesection of this uprooted community settled in theWestern Konkan coast of the present state ofMaharashtra, where they still hold together sociallyand call themselves "Saraswat Brahmins". Othersmoved further North into the Valley of Kashmir and,as the story goes, settled there after securing thepermission of the Naga tribes who then ruled overthis region. So, in the course of centuries, whilehol... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Read, study, and spread this message among Brahmin. Points to consider
for Brahmin
1) Patriotism: In a socially diffused
country like India; where every social group is involved in selfish agenda;
patriotism by Brahmin, who are victims of hatred, persecution and
discrimination on ethnic ground is waste of energy and diversion from problem
of Brahmin themselves. So far so many Brahmin sacrificed their family welfare,
property and lives for this cause, what Br... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Definition Hindu
Brahmin
A
person is said to a brahmin if he is born to a brahmin family but there is more
to the “definition” than just this inheritance by birth. Varna classification clearly states that the
aforesaid condition is the only possible scenario for being a brahmin but
the sacred texts and religious books have some other stories to tell.
A brahmin kid needs to fulfil some standard conditions and
rituals and thereafter he is allowed to join in the social status after str... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
I N D U S T R Y
Sir M. Visvesvaraya (1861-1962)
who coined the phrase ‘ Industrialize or perish’, and who as the Dewan (Prime
Minister) of the princely state of Mysore, was responsible for starting up
several industries, in the early twentieth century, is considered a
Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Jnanadeva
Marathi. Poet and saint. 13th century.
Vidyapati
Mythili. Poet. 14th century.
Eknath
Marathi. Poet and saint. 16th
century.
Modern Literature
In recent times, especially in the preceding two centuries,
hundreds of authors and thousands of works, in all the major Indian languages,
have enriched the Indian literary firmament. More information will be included
in future updates, after complete research.
However, for starters, are included the names of authors wh... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Pandharpur.
|
Maharashtra.
|
Panduranga
|
Prayag.
|
Uttar Pradesh.
|
Confluence
of Sacred rivers
|
Puri.
|
Orissa.
|
Jagannath
|
Sabarimalai.
|
Kerala.
|
Ayyappa
|
Srirangam.
|
Tamilna... | Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER.
May 6, 2012
Prayers of the Brahmins
Brahmins are enjoined
to offer prayers thrice daily, as prescribed in the Vedas. Young men are,
initiated by their Gurus, to chant the mantras , at
their first
“Thread ceremonies”, These are
the ‘Sandhya Vandana’ offered at dusk
and dawn, and Madhyanhika offered at noon.
The sacred mantra of Gayatri is recited at these times. Devata
pooja is
performed in the morning and evening.
Omkara mantra
OM
AUM
Harappa-Seal ... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
The practice of Religion
Bhakti Marga, Gnana Marga and Yoga
Marga,
are the three paths (Devotion, Knowledge and Yoga) for god
realization, which is the ultimate aim of the Hindu religion. All Brahminical
teachings and writings lead to one of these paths. One is free to choose the
path depending upon his or her intellect, inclination, or inner urge. Whereas
the Gnana and Yoga margas may call for high degree of learning and discipline,
the Bhakti Marga or the path of devotion and love is w... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Swami Vivekananda
1863 - 1902
Swami Vivekananda, who was born as Narendra, at Calcutta in 1863 was the favorite disciple
and chosen heir of Ramakrishna Paramahamsa. At an early age, he came under the
influence of Sri Ramakrishna, and took ‘Sanyasa’. After the passing away of his
guru, Vivekananda traveled the length and breadth of India, mostly by bare foot teaching
universal brotherhood of man, and Vedanta philosophy. Swami Vivekananda
represented India at the
C... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
In this period the mass of material generated was summarized in
the form of Sutras (rule in verse form expressed in brief but technical
language). Here, critical attitude in philosophy developed. Samkhya, Yoga,
Mimamsa, Vedanta, Vaisesika and Nyaya schools were born.
Scholastic period. Also dating from A.D 200
By this time the Sutras had become complex and unintelligible.
It was impossible to comprehend them without expert commentaries.
Great names of, Bhaskara, Jayanta, Kumarila Bha... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Rishi
means a sage. The Vedas were revealed to them and the respective hymns stand in their names. Seven Rishis (Saptarshi) are recognized as the mind born
sons of the creator Brahma. The
’Satapatabrahmana’ gives their names as,
Brahmin sages, where the bravest
warriors and the most pious priests live." (Arthur A Macdonell. A
history of Sanskrit literature).
Historically, Brahmin
philosophers and priests have played a key role in defining and giving me... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
The
religion of the Vedic period is called ‘Sanatana Dharma’ (ageless and timeless
moral and religious duty), which later came to be called Hinduism.
“Religion is
an experience. The Hindu scriptures, the Vedas, register the experience of
seers who grappled with the fundamental reality”. “The claim of the Vedas rests
on spiritual experience which is the birth right of every man. This experience
can be gained by anyone who undergoes a certain discipline and puts forth an
effor... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
E p i c M y t h o l o g y
Of later origin than the Vedas and the Upanishads are the great Epics
Ramayana, Mahabharata
and the Bhagavadgita. Ramayana and Mahabharata celebrate
the legendary actions of their respective heroes, Rama (Ramachandra) and Krishna who appear as mortal men and considered as
incarnations of lord Vishnu. The Bhagavadgita is a small but most
popular part of the Mahabharata. It is the subject of numerous
commentaries by scholars both... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
Great names from the Vedic period.
Agasthya
|
Angirasa
|
Apasthamba
|
Arundhati
|
Ashwalayana
|
Ashwatthama
|
Atharvan
|
Atri
|
Badarayana
|
Bharadwaja
|
Bhrigu
|
Brihaspati
|
Charaka
|
Chandogya
|
Chyavana
|
Dattatreya
|
Drona
|
Dhaumya
|
Durvasa
|
Gargi
|
Gowtama
|
Harita
|
Jamadagni
|
Kanwa
|
Kapila
|
Kasya... | Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
May 6, 2012
The three Acharyas, Shankara, Ramanuja and Madhwa have written
commentaries on the following ten Upanishads.
Isaavaasya Upanishad. Kenopanishad. and Kathopanishad.
Prashna, Mundaka and Mandukya Upanishads.
Taittereeya Upanishad and Aitareya Upanishad.
Chaandogya Upanishad.
Brihadaranyaka Upanishad.
Brihadaaranyaka
is the biggest Upanishad. This Upanishad discusses the nature of the Soul (Aatman) and describes it as ‘ that which cannot be described’. This is it’s ‘neti neti�... Continue reading...
Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER. Posted In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM
fo'kky foiz
;qok 'kfDr lEesyu o
lEeku lekjksg
t; ij'kqjke !
i`Fkd jgs rks fc[kj tk;saxs] ,d
gks dj gh ge laoj ik;saxs]
cuk ysaxs fo'okl dk lw;Z] fQj
ns[ksa mtkys fd/kj tk;saxs A
vkidks lwfpr djrs gq, vR;Ur g"kZ gks jgk gS
fd Jh loZ czkg~e.k egklHkk }kjk foiz ;qokvksa eas
jktuSfrd] lkekftd] lkaLd`frd psruk dk 'ka[kukn djus gsrq fo'kky foiz ;qok 'kfDr
lEesyu o lEeku lekjksg dk vk;kstu fd;k tk;sxk A ftlesa Nk= jktuhfr esa Hkkx ysus okys lHkh ;qokvksa dks fopkj/kkjk] ikVhZ ;k t;&ijkt; ls Åij mB dj lEekfur fd;k tk;sx k ftlls fd czkg~e.k jktuhfrd :i ls etcwr
gksa A
|