reality of gujrat riots

Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER on Sunday, May 6, 2012 Under: BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM

गुजरात दंगे का सच
आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी| जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं| मै भी दंगो को गलत मानता हु क्युकी दंगे सिर्फ दर्द दे कर जाते हैं जिनको दंगो से कोई मतलब होता है उनको|

अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों? २७ फरवरी २००२ साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर| इस ट्रेन में जलने से ५७ लोगो को मौत हुई| प्रथम दृष्टया रहे वहा के १४ पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी| अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट  मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|

अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?
सवालो के  बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की  लिस्ट अभी लम्बी है|


अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?

लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई| बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी| उस समय मुस्किल से १५-१६ की बच्ची की जुबानी|

ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर| उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है| हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या| भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार कड़ी भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी| एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो"| साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|

अब सवाल उठता है की हिंदुवो ने सुबह ८ बजे ही दंगा क्यों नहीं शुरू किया बल्कि हिन्दू उस दिन दोपहर तक शांत बना रहा (ये बात आज तक किसी को नहीं दिखी है)| हिंदुवो ने जवाब देना चालू किया जब उनके घरो, गओंवो, मोहल्लो में वो जली और कटी फटी लाशें पहुंची| क्या ये लाशें हिंदुवो को मुसलमानों की गिफ्ट थी और हिंदुवो को शांत बैठना चाहिए था सेकुलर बन कर या शायद हाँ| हिन्दू सड़क पर उतारे २७ फ़रवरी २००२ के दोपहर से| पूरा एक दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी ने करना था तो २७ फ़रवरी २००२ की सुबह ८ बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने २८ फ़रवरी २००२ की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए| पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम  पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी| या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|

उसी १ मार्च २००२ को हमारे राष्ट्रीय मानवीय अधिकार (National Human Rights) वालो ने मोदी को अल्टीमेटम दिया ३ दिन में पुरे घटनाक्रम का रिपोर्ट पेश करने के लिए लेकिन कितने आश्चर्य की बात है की यही राष्ट्रीय मानवा अधिकार वाले २७ फ़रवरी २००२ और २८ फ़रवरी २००२ को गायब रहे| इन मानवा अधिकार वालो ने तो पहले दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर ये रिपोर्ट माँगा की क्या कदम उठाया गया गुजरात सरकार के द्वारा|


एक ऐसे ही सबसे बड़े घटना क्रम में दिखाए गए या कहे तो बेचे गए "गुलबर्ग सोसाइटी" के जलने की| इस गुलबर्ग सोसाइटी ने पुरे मीडिया का ध्यान अपने तरफ खिंच लिया| यहाँ एक पूर्व संसद एहसान जाफरी साहब रहते थे| ये महाशय का ना तो एक भी बयान था २७ फरवरी २००२ को और ना ही ये डरे थे उस समय तक| लेकिन जब २८ फरवरी २००२ की सुबह जब कुछ लोगो ने इनके घर को घेरा जिसमे कुछ कुछ तथाकथित मुस्लमान छुपे हुए थे, तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर गोली चलवाया अपने लोगो से जिसमे २ हिन्दू मरे और १३ हिन्दू गंभीर रूप से घायल हो गए| फिर इस घटनाक्रम के बाद जब भीड़ बढ़ने लगी इनके घर पर तो ये औथोरितिज, अपने यार-दोस्तों को फ़ोन करने लगे और तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल ४२ लोग मरे| यहाँ शायद भीड़ के आने पर ही एहसान साहब को पुलिस को फ़ोन करना चाहिए था ना की खुद के बन्दों के द्वारा गोली चलवाना चाहिए था| पर इन्होने गोली चलाने के बाद फ़ोन किया डाइरेक्टर जेनेरल ऑफ़ पुलिस को| यहाँ एक और झूट सामने आया जब अरुंधती रॉय जैसी लेखिका तक ने यहाँ तक लिख दिया की एहसान जाफरी की बेटी को नंगा करके बलात्कार के बाद मारा गया और साथ ही एहसान जाफरी को भी| पर यहाँ एहसान जाफरी के बड़े बेटे ने ही पोल खोल दी की उसके पिता की जान गई उस दिन पर उसकी बहन तो अमेरिका में रहती थी और रहती है| तो यहाँ कौन किसको झूटे केस में फंसना चाह रहा है ये क्लियर है|

अब यहाँ तक तो सही था पर गोधरा में साबरमती को कैसे इस दंगे से अलग किया जाता और हिंदुवो को इसके लिए आरोपित किया जाता इसके लिए लोग गोधरा के दंगे को ऐसे तो संभल नहीं सकते थे अपने शब्दों से, तो एक कहानी प्रकाश में आई| कहानी थी की कारसेवक गोधरा स्टेशन पर चाय पिने उतरे और चाय देने वाला जो की एक मुस्लमान था उसको पैसे नहीं दिए...बल्कि गुजराती अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं...चलिए छोडिये ये धर्मान्धो की कहानी में कभी दिखेगा ही नहीं आगे बढ़ते हैं| अब कारसेवको ने पैसा तो दिया नहीं बल्कि मुस्लमान की दाढ़ी खिंच कर उसको मारने लगे तभी उस बूढ़े मुस्लमान की बेटी जो की १६ साल की बताई गई वो आई तो कारसेवको ने उसको बोगी में खिंच कर बोगी का दरवाजा बंद कर दिया अन्दर से| और इसके प्रतिफल में मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और ५८ लोगो को मार दिया  जिन्दा जला कर या काट कर| अब अगर इस मनगढ़ंत कहानी को मान भी लें तो कई सवाल उठते हैं:-

क्या उस बूढ़े मुस्लमान चाय वाले ने रेलवे पुलिस को इत्तिला किया?
रेलवे पुलिस उस ट्रेन को वहा से जाने नहीं देती या लड़की को उतर लिया जाता|
उस बूढ़े चाय वाले ने २७ फ़रवरी २००२ को कोई ऍफ़.आइ.आर क्यों नहीं दाखिल किया?
५ मिनट में ही सैकड़ो लीटर पेट्रोल और इतनी बड़ी भीड़ आखिर जुटी कैसे?
सुबह ८ बजे सैकड़ो लीटर पेट्रोल आया कहा से?
एक भी केस २७ फ़रवरी २००२ के तारीख में मुसलमानों के द्वारा क्यों नहीं दाखिल हुआ?

अब असलियत ये सामने आयी रेलवे पुलिस की तफतीस में की उस दिन गोधरा स्टेसन पर कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं थी| ना तो चाय वाले के साथ कोई झगडा हुआ था और ना ही किसी लड़की के साथ में कोई बदतमीजी या अपहरण की घटना हुई| इसके बाद आयी नानावती रिपोर्ट में कहा गया है की जमीअत-उलमा-इ-हिंद का हाथ था उन ५८ लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने में|

दंगे में ७२० मुस्लमान मारे तो २५० हिन्दू भी मारे| मुसलमानों के मरने का सभी शोक मानते हैं चाहे वो हिन्दू हो, चाहे वो मुस्लमान हो या चाहे वो राजनेता या मीडिया हो पर दंगे में २५० मरे हुए हिंदुवो और साबरमती ट्रेन में मरे ५८ हिंदुवो को कोई नहीं पूछता है कोई बात तक नहीं करता है सभी को केवल मरे हुए मुस्लमान दीखते हैं|

एक और बात काबिले गौर है क्या किसी भी मुस्लिम लीडर का बयान आया था साबरमती ट्रेन के जलने पर?
क्या किसी मुस्लिम लीडर ने साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के लिए खेद प्रकट किया?

अब एक छोटा सा इतिहास देना चाहूँगा गोधरा के पुराने दंगो का...क्युकी २००२ की घटना पहली घटना नहीं थी गोधरा के लिए

१९४६: सद्वा रिज़वी और चुडिघर ये दोनों पाकिस्तान सपोर्टर थे ने पारसी सोलापुरी को दंगे में मारा बाद में विभाजन के बाद चुडिघर पाकिस्तान चला गया
१९४८: सद्वा रिज़वी ने ही कलेक्टर श्री पिम्पुत्कर को मरना चाहा जिसे कलेक्टर के अंगरक्षकों ने बचाया अपनी जान देकर और उसके बाद सद्वा रिज़वी पाकिस्तान भाग गया
१९४८: एक हिन्दू का गला काटा गया और करीब २००० हिन्दू घर जला दिए गए जहा ६ महीने तक कर्फ्यू चला
१९६५: पुलिस चौकी नंबर ७ के पास के हिंदुवो के घर और दुकान जला दिए गए साथ ही पुलिस स्टेशन पर भी मुसलमानों का हमला हुआ उस समय वहा के MLA कांग्रेस के थे और वो भी मुस्लमान थे
१९८०: २ हिन्दू बच्चो सहित ५ लोगो को जिन्दा जला दिया गया, ४० दुकानों को जला दिया गया, गुरूद्वारे को जला दिया गया मुसलमानों के द्वारा, यहाँ १ साल तक कर्फ्यू रहा
१९९०: ४ हिन्दू शिक्षको के साथ एक हिन्दू दर्जी को काट दिया गया
१९९२: १०० से ज्यादा घरो को जला दिया गया ताकि ये मुस्लमान उन जमीनों पर कब्ज़ा कर सकें आज वो जमीने वीरान पड़ी हैं क्युकी इनके चलते हिनू वहा से चले गए
२००२: ३ बोगियों को जला दिया गया जिसमे ५८ लोग जल कर मरे इनमे से कुछ लोग जो बचे और बहार निकलने की कोशिस किये उनको काट दिया गया
२००३: गणेश प्रतिमा के विशार्जन के समय मुसलमानों ने पत्थरबाजी की और इस खबर को रीडिफ़ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने छपा बाकि किसी ने भी नही

एक तस्वीर बेचीं जाती है गुजरात दंगे के तौर पर वो है कुतुबुद्दीन अंसारी की


पर यही मीडिया ये तस्वीरे क्यों नहीं दिखाती जो की ट्रेन जलने से मरे या कोई सेकुलर इनके बारे में नहीं बात करता है?

    


      
    मुसलमान सारी दुनिया में वास्तव में सबसे दुखी कौम है । मुसलमान कहते हैं सारी दुनिया इस्लाम को समाप्त करने की साजिश कर रही है । वे ऐसा क्यों कहते हैं वे ऐसा इसीलिए कहते हैं क्योंकि वे खुद सारी गैर मुस्लिम दुनिया को समाप्त करके सारी दुनिया को इस्लाम के हरे रंग में रंगने की तैयारी कर रहे हैं । चूंकि वे खुद सारी दुनिया के हजार वर्ष से दुश्मन बनें हैं अतः उन्हें सारी दुनिया भी मुसलमानो की दुश्मन नजर आती है । दिया । अब हथियारों का उत्तर किसी भी दुनिया में अंहिसा से नहीं दिया जा सकता अतएव भारत सरकार ने भी मजबूरी में अपनी सेना को कश्मीर में लगाना पड़ा । अब लगातार 25 वर्षों से कश्मीर भारत से केवल सेना के बल पर ही रूका हुआ है अगर आज भारत सरकार कश्मीर से सेना हटा लेती है तो निश्चित रूप से कश्मीरी मुसलमान कश्मीर का पाकिस्तान में विलय कर देंगे ये मुसलमानों की मजबूरी है । कुरान व मौहम्मद के आदेश से मुसलमान इंकार कर नहीं सकते । इसीलिए वह कश्मीरी जिसकी प्रति व्यक्ति आय आतंकवाद के शुरू होने से पहले भारत में सबसे अधिक थी आज हजारों करोड़ की मदद से दाना पानी खा रहे हैं
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    brajeshMay 4, 2012 09:40 PM

    ईरान में अविवाहित लड़की की फाँसी देने के पहले उनका बलात्कार किया जाता है..चूँकि मुसलमान धर्म के अनुसार बिना शादी-शुदा लड़की को फाँसी देने का नियम नहीं है इसलिए उस कुँवारी लड़की का जल्लाद से शादी करवाकर उसका कौमार्य तोड़ा जाता है और उसके अगले दिन फाँसी दी जाती है..यनि इनके लिए शादी का मतलब बस इतना सा ही है..यनि बस सेक्स करना..वो शादी वाली रात इतनी भयानक होती है कि लड़कियाँ फाँसी से नहीं बल्कि उस बलात्कार वाले रात से ही डरती है..कई लड़कियों को उस रात के बाद अपना चेहरा बुरी तरह नोचते देखा गया है..
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    brajeshMay 4, 2012 09:44 PM

    खिलजी वंश के पतन के पश्चात् तुगलकों-
    ग्यासुद्दीन तुगलक (१३२०-२५) मौहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) एवं फ़िरोज शाह तुगलक(१३५१-१३८८) का राज्य आया।
    फ़िरोज तुगलक ने जब जाजनगर (उड़ीसा) पर हमला किया तो वह राज शेखर के पुत्र को पकड़ने में सफल हो गया। उसने उसको मुसलमान बनाकर उसका नाम शकर रखा।(६२)
    सुल्तान फ़िरोज तुगलक अपनी जीवनी ‘फतुहाल-ए-फिरोजशाही’ में लिखता है-’मैं प्रजा को इस्लाम स्वीकारने के लिये उत्साहित करता था। मैंने घोषणा कर दी थी कि इस्लाम स्वीकार करने वाले पर लगा जिजिया माफ़ कर दिया जायेगा।
    यह सूचना जब लोगों तक पहुँची तो लोग बड़ी संखया में मुसलमान बनने लगे। इस प्रकार आज के दिन तक वह चहुँ ओर से चले आ रहे हैं। इस्लाम ग्रहण करने पर उनका जिजिया माफ कर दिया जाता है और उन्हें खिलअत तथा दूसरी वस्तुएँ भेंट दी जाती है।(६२)
    १३६० ई. में फिरोज़शाह तुगलक ने जगन्नाथपुरी के मंदिर को ध्वस्त किया। अपनी आत्मकथा में यह सुल्तान हिन्दू प्रजा के विरुद्ध अपने अत्याचारों का वर्णन करते हुए लिखता है-’जगन्नाथ की मूर्ति तोड़ दी गयी और पृथ्वी पर फेंक कर अपमानित की गई। दूसरी मूर्ति खोद डाली गई और जगन्नाथ की मूर्ति के साथ मस्जिदों के सामने सुन्नियों के मार्ग में डाल दी गई जिससे वह मुस्लिमों के जूतों के नीचे रगड़ी जाती रहें।’(६३)
    इस सुल्तान के आदेश थे कि जिस स्थान को भी विजय किया जाये, वहाँ जो भी कैदी पकड़े जाये; उनमें से छाँटकर सर्वोत्तम सुल्तान की सेवा के लिये भेज दिये जायें। शीघ्र ही उसके पास १८०००० (एक लाख अस्सी हजार) गुलाम हो गये।(६३क)
    ‘उड़ीसा के मंदिरों को तोड़कर फिरोजशाह ने समुद्र में एक टापू पर आक्रमण किया। वहाँ जाजनगर से भागकर एक लाख शरणार्थी स्त्री-बच्चे इकट्ठे हो गये थे। इस्लाम के तलवारबाजों ने टापू को काफिरों के रक्त का प्याला बना दिया। गर्भवती स्त्रियों, बच्चों को पकड़-पकड़कर सिपाहियों का गुलाम बना दिया गया।’(६४)
    नगर कोट कांगड़ा में ज्वालामुखी मंदिर का यही हाल हुआ। फरिश्ता के अनुसार मूर्ति के टुकड़ों को गाय के गोश्त के साथ तोबड़ों में भरकर ब्राहमणों की गर्दनों से लटका दिया गया। मुखय मूर्ति बतौर विजय चिन्ह के मदीना भेज दी गई। (६८)
    Reply
    brajeshMay 4, 2012 09:45 PM

    मौहम्मद-बिन-हामिद खानी की पुस्तक ‘तारीखे मौहमदी’ के अनुसार फीरोज तुगलक के पुत्र नसीरुद्दीन महमूद ने राम सुमेर पर आक्रमण करते समय सोचा कि यदि मैं सेना को सीधे-सीधे आक्रमण के आदेश दे दूँगा तो सैनिक क्षेत्र में एक भी हिन्दू को जीवित नहीं छोड़ेंगे। यदिमैं धीरे-धीरे आगे बढूँगा तो कदाचित वे इस्लाम स्वीकार करने को राजी हो जायेंगे। (६६)
    मालवा में १४५४ ई. में सुल्तान महमूद ने हाड़ा राजपूतों पर आक्रमण किया तो उसने अनेकों का वध कर दिया और उनके परिवारों को गुलाम बनाकर माँडू भेज दिया। (६७)
    ग्सासुद्दीन (१४६९-१५००) का हरम हिन्दू जमींदारों और राजाओं की सुंदर गुलाम पुत्रियों से भरा हुआ था। इनकी संखया निजामुद्दीन के अनुसार १६००० (सोलह हजार) और फरिद्गता के अनुसार १०,००० (दस हजार) थी। इनकी देखभाल के लिये सहस्त्रों गुलाम रहे होंगे। (६९)
    दक्खन
    प्रथम बहमनी सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह (१३४७-१३५८) ने उत्तरी कर्नाटक के हिन्दू राजाओं पर आक्रमण किया। लूट में मंदिरों में नाचने वाली १००० (एक हजार) हिन्दू स्त्रियाँ हाथ आई। (६९)
    १४०६ में सुल्तान ताजुद्दीन फ़िरोज़ (१३९७-१४२२) ने विजयनगर के विरुद्ध युद्ध में वहाँ से ६०,००० (साठ हजार) किद्गाोरों और बच्चों को पकड़ कर गुलाम बनाया। द्गाांति स्थापित होने पर बुक्का राजा ने दूसरी भेंटों के अतिरिक्त गाने नाचने में निपुण २००० (दो हजार) लड़के-लड़कियाँ भेंट में दिये। (७०)
    उसका उत्तराधिकारी अहमद वली (१४२२-३६)विजयनगर को एक ओर से दूसरी ओर तक लोगों का कत्ले-आम करता, स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाता, रौंद रहा था। सभी गुलाम मुसलमान बना लिये जाते थे। (७१)
    सुल्तान अलाउद्दीन (१४३६-४८) ने अपने हरम में १००० (एक हजार) स्त्रियाँ इकट्ठी कर ली थीं।(७२)
    जब हम सोचते हैं कि बहमनी सुल्तानों और विजयनगर में लगभग १५० वर्ष तक युद्ध होता रहा तो कितने कत्ल हुये, कितनी स्त्रियाँ और बच्चे गुलाम बनाये गये और कितनों का बलात् धर्मान्तरण किया, गया उसका हिसाब लगाना कठिन हो जाता है। (७३)
    बंगाल
    ‘बंगाल के डरपोक लोगों को तलवार के बल पर १३वीं-१४वीं शताब्दी में बड़े पैमाने पर मुसलमान बनाने का श्रेय (इस्लाम के) जोशीले सिपाहियों को जाता है जिन्होंने पूर्वी सीमाओं तक घने जंगलों में पैठ कर वहाँ इस्लाम के झंडे गाड़ दिये। लोकोक्ति के अनुसार, इनमें सबसे अधिक सफल थे; आदम शहीद, शाह जलाल मौहम्मद और कर्मफरमा साहब। सिलहट के शाह जलाल द्वारा बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। इस्माइल द्गााह गाजी ने हिन्दू राजा को पराजित कर बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया (७३क) इन नामों के साथ जुड़े ‘गाजी’ (हिन्दुओंको कत्ल करने वाला) और ‘शहीद’ (धर्म युद्ध में हिन्दुओं द्वारा मारे जाने वाला) शब्द से ही उनके उत्साह का अनुमान किया जा सकता है।
    ‘१९०१ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार अनेक स्थानों पर हिन्दुओं पर भीद्गाण अत्याचार किये गये। लोकगाथाओं के अनुसार मौहम्मद इस्माइल शाह ‘गाजी’ ने हुगली के हिन्दू राजा को पराजित कर दिया और लोगों का बलात् धर्मान्तरण किया। (७४)
    इसी रिपोर्ट के अनुसार मुर्शिद कुली खाँ का नियम था कि जो भी किसान अथवा जमींदार लगान न दे सके उसको परिवार सहित मुसलमान होना पड़ता था। (७५)
  

In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM 


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गुजरात दंगे का सच
आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी| जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं| मै भी दंगो को गलत मानता हु क्युकी दंगे सिर्फ दर्द दे कर जाते हैं जिनको दंगो से कोई मतलब होता है उनको|

अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों? २७ फरवरी २००२ साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर| इस ट्रेन में जलने से ५७ लोगो को मौत हुई| प्रथम दृष्टया रहे वहा के १४ पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी| अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट  मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|

अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?
सवालो के  बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की  लिस्ट अभी लम्बी है|


अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?

लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई| बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी| उस समय मुस्किल से १५-१६ की बच्ची की जुबानी|

ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर| उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है| हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या| भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार कड़ी भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी| एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो"| साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|

अब सवाल उठता है की हिंदुवो ने सुबह ८ बजे ही दंगा क्यों नहीं शुरू किया बल्कि हिन्दू उस दिन दोपहर तक शांत बना रहा (ये बात आज तक किसी को नहीं दिखी है)| हिंदुवो ने जवाब देना चालू किया जब उनके घरो, गओंवो, मोहल्लो में वो जली और कटी फटी लाशें पहुंची| क्या ये लाशें हिंदुवो को मुसलमानों की गिफ्ट थी और हिंदुवो को शांत बैठना चाहिए था सेकुलर बन कर या शायद हाँ| हिन्दू सड़क पर उतारे २७ फ़रवरी २००२ के दोपहर से| पूरा एक दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी ने करना था तो २७ फ़रवरी २००२ की सुबह ८ बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने २८ फ़रवरी २००२ की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए| पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम  पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी| या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|

उसी १ मार्च २००२ को हमारे राष्ट्रीय मानवीय अधिकार (National Human Rights) वालो ने मोदी को अल्टीमेटम दिया ३ दिन में पुरे घटनाक्रम का रिपोर्ट पेश करने के लिए लेकिन कितने आश्चर्य की बात है की यही राष्ट्रीय मानवा अधिकार वाले २७ फ़रवरी २००२ और २८ फ़रवरी २००२ को गायब रहे| इन मानवा अधिकार वालो ने तो पहले दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर ये रिपोर्ट माँगा की क्या कदम उठाया गया गुजरात सरकार के द्वारा|


एक ऐसे ही सबसे बड़े घटना क्रम में दिखाए गए या कहे तो बेचे गए "गुलबर्ग सोसाइटी" के जलने की| इस गुलबर्ग सोसाइटी ने पुरे मीडिया का ध्यान अपने तरफ खिंच लिया| यहाँ एक पूर्व संसद एहसान जाफरी साहब रहते थे| ये महाशय का ना तो एक भी बयान था २७ फरवरी २००२ को और ना ही ये डरे थे उस समय तक| लेकिन जब २८ फरवरी २००२ की सुबह जब कुछ लोगो ने इनके घर को घेरा जिसमे कुछ कुछ तथाकथित मुस्लमान छुपे हुए थे, तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर गोली चलवाया अपने लोगो से जिसमे २ हिन्दू मरे और १३ हिन्दू गंभीर रूप से घायल हो गए| फिर इस घटनाक्रम के बाद जब भीड़ बढ़ने लगी इनके घर पर तो ये औथोरितिज, अपने यार-दोस्तों को फ़ोन करने लगे और तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल ४२ लोग मरे| यहाँ शायद भीड़ के आने पर ही एहसान साहब को पुलिस को फ़ोन करना चाहिए था ना की खुद के बन्दों के द्वारा गोली चलवाना चाहिए था| पर इन्होने गोली चलाने के बाद फ़ोन किया डाइरेक्टर जेनेरल ऑफ़ पुलिस को| यहाँ एक और झूट सामने आया जब अरुंधती रॉय जैसी लेखिका तक ने यहाँ तक लिख दिया की एहसान जाफरी की बेटी को नंगा करके बलात्कार के बाद मारा गया और साथ ही एहसान जाफरी को भी| पर यहाँ एहसान जाफरी के बड़े बेटे ने ही पोल खोल दी की उसके पिता की जान गई उस दिन पर उसकी बहन तो अमेरिका में रहती थी और रहती है| तो यहाँ कौन किसको झूटे केस में फंसना चाह रहा है ये क्लियर है|

अब यहाँ तक तो सही था पर गोधरा में साबरमती को कैसे इस दंगे से अलग किया जाता और हिंदुवो को इसके लिए आरोपित किया जाता इसके लिए लोग गोधरा के दंगे को ऐसे तो संभल नहीं सकते थे अपने शब्दों से, तो एक कहानी प्रकाश में आई| कहानी थी की कारसेवक गोधरा स्टेशन पर चाय पिने उतरे और चाय देने वाला जो की एक मुस्लमान था उसको पैसे नहीं दिए...बल्कि गुजराती अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं...चलिए छोडिये ये धर्मान्धो की कहानी में कभी दिखेगा ही नहीं आगे बढ़ते हैं| अब कारसेवको ने पैसा तो दिया नहीं बल्कि मुस्लमान की दाढ़ी खिंच कर उसको मारने लगे तभी उस बूढ़े मुस्लमान की बेटी जो की १६ साल की बताई गई वो आई तो कारसेवको ने उसको बोगी में खिंच कर बोगी का दरवाजा बंद कर दिया अन्दर से| और इसके प्रतिफल में मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और ५८ लोगो को मार दिया  जिन्दा जला कर या काट कर| अब अगर इस मनगढ़ंत कहानी को मान भी लें तो कई सवाल उठते हैं:-

क्या उस बूढ़े मुस्लमान चाय वाले ने रेलवे पुलिस को इत्तिला किया?
रेलवे पुलिस उस ट्रेन को वहा से जाने नहीं देती या लड़की को उतर लिया जाता|
उस बूढ़े चाय वाले ने २७ फ़रवरी २००२ को कोई ऍफ़.आइ.आर क्यों नहीं दाखिल किया?
५ मिनट में ही सैकड़ो लीटर पेट्रोल और इतनी बड़ी भीड़ आखिर जुटी कैसे?
सुबह ८ बजे सैकड़ो लीटर पेट्रोल आया कहा से?
एक भी केस २७ फ़रवरी २००२ के तारीख में मुसलमानों के द्वारा क्यों नहीं दाखिल हुआ?

अब असलियत ये सामने आयी रेलवे पुलिस की तफतीस में की उस दिन गोधरा स्टेसन पर कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं थी| ना तो चाय वाले के साथ कोई झगडा हुआ था और ना ही किसी लड़की के साथ में कोई बदतमीजी या अपहरण की घटना हुई| इसके बाद आयी नानावती रिपोर्ट में कहा गया है की जमीअत-उलमा-इ-हिंद का हाथ था उन ५८ लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने में|

दंगे में ७२० मुस्लमान मारे तो २५० हिन्दू भी मारे| मुसलमानों के मरने का सभी शोक मानते हैं चाहे वो हिन्दू हो, चाहे वो मुस्लमान हो या चाहे वो राजनेता या मीडिया हो पर दंगे में २५० मरे हुए हिंदुवो और साबरमती ट्रेन में मरे ५८ हिंदुवो को कोई नहीं पूछता है कोई बात तक नहीं करता है सभी को केवल मरे हुए मुस्लमान दीखते हैं|

एक और बात काबिले गौर है क्या किसी भी मुस्लिम लीडर का बयान आया था साबरमती ट्रेन के जलने पर?
क्या किसी मुस्लिम लीडर ने साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के लिए खेद प्रकट किया?

अब एक छोटा सा इतिहास देना चाहूँगा गोधरा के पुराने दंगो का...क्युकी २००२ की घटना पहली घटना नहीं थी गोधरा के लिए

१९४६: सद्वा रिज़वी और चुडिघर ये दोनों पाकिस्तान सपोर्टर थे ने पारसी सोलापुरी को दंगे में मारा बाद में विभाजन के बाद चुडिघर पाकिस्तान चला गया
१९४८: सद्वा रिज़वी ने ही कलेक्टर श्री पिम्पुत्कर को मरना चाहा जिसे कलेक्टर के अंगरक्षकों ने बचाया अपनी जान देकर और उसके बाद सद्वा रिज़वी पाकिस्तान भाग गया
१९४८: एक हिन्दू का गला काटा गया और करीब २००० हिन्दू घर जला दिए गए जहा ६ महीने तक कर्फ्यू चला
१९६५: पुलिस चौकी नंबर ७ के पास के हिंदुवो के घर और दुकान जला दिए गए साथ ही पुलिस स्टेशन पर भी मुसलमानों का हमला हुआ उस समय वहा के MLA कांग्रेस के थे और वो भी मुस्लमान थे
१९८०: २ हिन्दू बच्चो सहित ५ लोगो को जिन्दा जला दिया गया, ४० दुकानों को जला दिया गया, गुरूद्वारे को जला दिया गया मुसलमानों के द्वारा, यहाँ १ साल तक कर्फ्यू रहा
१९९०: ४ हिन्दू शिक्षको के साथ एक हिन्दू दर्जी को काट दिया गया
१९९२: १०० से ज्यादा घरो को जला दिया गया ताकि ये मुस्लमान उन जमीनों पर कब्ज़ा कर सकें आज वो जमीने वीरान पड़ी हैं क्युकी इनके चलते हिनू वहा से चले गए
२००२: ३ बोगियों को जला दिया गया जिसमे ५८ लोग जल कर मरे इनमे से कुछ लोग जो बचे और बहार निकलने की कोशिस किये उनको काट दिया गया
२००३: गणेश प्रतिमा के विशार्जन के समय मुसलमानों ने पत्थरबाजी की और इस खबर को रीडिफ़ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने छपा बाकि किसी ने भी नही

एक तस्वीर बेचीं जाती है गुजरात दंगे के तौर पर वो है कुतुबुद्दीन अंसारी की


पर यही मीडिया ये तस्वीरे क्यों नहीं दिखाती जो की ट्रेन जलने से मरे या कोई सेकुलर इनके बारे में नहीं बात करता है?

    


      
    मुसलमान सारी दुनिया में वास्तव में सबसे दुखी कौम है । मुसलमान कहते हैं सारी दुनिया इस्लाम को समाप्त करने की साजिश कर रही है । वे ऐसा क्यों कहते हैं वे ऐसा इसीलिए कहते हैं क्योंकि वे खुद सारी गैर मुस्लिम दुनिया को समाप्त करके सारी दुनिया को इस्लाम के हरे रंग में रंगने की तैयारी कर रहे हैं । चूंकि वे खुद सारी दुनिया के हजार वर्ष से दुश्मन बनें हैं अतः उन्हें सारी दुनिया भी मुसलमानो की दुश्मन नजर आती है । दिया । अब हथियारों का उत्तर किसी भी दुनिया में अंहिसा से नहीं दिया जा सकता अतएव भारत सरकार ने भी मजबूरी में अपनी सेना को कश्मीर में लगाना पड़ा । अब लगातार 25 वर्षों से कश्मीर भारत से केवल सेना के बल पर ही रूका हुआ है अगर आज भारत सरकार कश्मीर से सेना हटा लेती है तो निश्चित रूप से कश्मीरी मुसलमान कश्मीर का पाकिस्तान में विलय कर देंगे ये मुसलमानों की मजबूरी है । कुरान व मौहम्मद के आदेश से मुसलमान इंकार कर नहीं सकते । इसीलिए वह कश्मीरी जिसकी प्रति व्यक्ति आय आतंकवाद के शुरू होने से पहले भारत में सबसे अधिक थी आज हजारों करोड़ की मदद से दाना पानी खा रहे हैं
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    brajeshMay 4, 2012 09:40 PM

    ईरान में अविवाहित लड़की की फाँसी देने के पहले उनका बलात्कार किया जाता है..चूँकि मुसलमान धर्म के अनुसार बिना शादी-शुदा लड़की को फाँसी देने का नियम नहीं है इसलिए उस कुँवारी लड़की का जल्लाद से शादी करवाकर उसका कौमार्य तोड़ा जाता है और उसके अगले दिन फाँसी दी जाती है..यनि इनके लिए शादी का मतलब बस इतना सा ही है..यनि बस सेक्स करना..वो शादी वाली रात इतनी भयानक होती है कि लड़कियाँ फाँसी से नहीं बल्कि उस बलात्कार वाले रात से ही डरती है..कई लड़कियों को उस रात के बाद अपना चेहरा बुरी तरह नोचते देखा गया है..
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    brajeshMay 4, 2012 09:44 PM

    खिलजी वंश के पतन के पश्चात् तुगलकों-
    ग्यासुद्दीन तुगलक (१३२०-२५) मौहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) एवं फ़िरोज शाह तुगलक(१३५१-१३८८) का राज्य आया।
    फ़िरोज तुगलक ने जब जाजनगर (उड़ीसा) पर हमला किया तो वह राज शेखर के पुत्र को पकड़ने में सफल हो गया। उसने उसको मुसलमान बनाकर उसका नाम शकर रखा।(६२)
    सुल्तान फ़िरोज तुगलक अपनी जीवनी ‘फतुहाल-ए-फिरोजशाही’ में लिखता है-’मैं प्रजा को इस्लाम स्वीकारने के लिये उत्साहित करता था। मैंने घोषणा कर दी थी कि इस्लाम स्वीकार करने वाले पर लगा जिजिया माफ़ कर दिया जायेगा।
    यह सूचना जब लोगों तक पहुँची तो लोग बड़ी संखया में मुसलमान बनने लगे। इस प्रकार आज के दिन तक वह चहुँ ओर से चले आ रहे हैं। इस्लाम ग्रहण करने पर उनका जिजिया माफ कर दिया जाता है और उन्हें खिलअत तथा दूसरी वस्तुएँ भेंट दी जाती है।(६२)
    १३६० ई. में फिरोज़शाह तुगलक ने जगन्नाथपुरी के मंदिर को ध्वस्त किया। अपनी आत्मकथा में यह सुल्तान हिन्दू प्रजा के विरुद्ध अपने अत्याचारों का वर्णन करते हुए लिखता है-’जगन्नाथ की मूर्ति तोड़ दी गयी और पृथ्वी पर फेंक कर अपमानित की गई। दूसरी मूर्ति खोद डाली गई और जगन्नाथ की मूर्ति के साथ मस्जिदों के सामने सुन्नियों के मार्ग में डाल दी गई जिससे वह मुस्लिमों के जूतों के नीचे रगड़ी जाती रहें।’(६३)
    इस सुल्तान के आदेश थे कि जिस स्थान को भी विजय किया जाये, वहाँ जो भी कैदी पकड़े जाये; उनमें से छाँटकर सर्वोत्तम सुल्तान की सेवा के लिये भेज दिये जायें। शीघ्र ही उसके पास १८०००० (एक लाख अस्सी हजार) गुलाम हो गये।(६३क)
    ‘उड़ीसा के मंदिरों को तोड़कर फिरोजशाह ने समुद्र में एक टापू पर आक्रमण किया। वहाँ जाजनगर से भागकर एक लाख शरणार्थी स्त्री-बच्चे इकट्ठे हो गये थे। इस्लाम के तलवारबाजों ने टापू को काफिरों के रक्त का प्याला बना दिया। गर्भवती स्त्रियों, बच्चों को पकड़-पकड़कर सिपाहियों का गुलाम बना दिया गया।’(६४)
    नगर कोट कांगड़ा में ज्वालामुखी मंदिर का यही हाल हुआ। फरिश्ता के अनुसार मूर्ति के टुकड़ों को गाय के गोश्त के साथ तोबड़ों में भरकर ब्राहमणों की गर्दनों से लटका दिया गया। मुखय मूर्ति बतौर विजय चिन्ह के मदीना भेज दी गई। (६८)
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    brajeshMay 4, 2012 09:45 PM

    मौहम्मद-बिन-हामिद खानी की पुस्तक ‘तारीखे मौहमदी’ के अनुसार फीरोज तुगलक के पुत्र नसीरुद्दीन महमूद ने राम सुमेर पर आक्रमण करते समय सोचा कि यदि मैं सेना को सीधे-सीधे आक्रमण के आदेश दे दूँगा तो सैनिक क्षेत्र में एक भी हिन्दू को जीवित नहीं छोड़ेंगे। यदिमैं धीरे-धीरे आगे बढूँगा तो कदाचित वे इस्लाम स्वीकार करने को राजी हो जायेंगे। (६६)
    मालवा में १४५४ ई. में सुल्तान महमूद ने हाड़ा राजपूतों पर आक्रमण किया तो उसने अनेकों का वध कर दिया और उनके परिवारों को गुलाम बनाकर माँडू भेज दिया। (६७)
    ग्सासुद्दीन (१४६९-१५००) का हरम हिन्दू जमींदारों और राजाओं की सुंदर गुलाम पुत्रियों से भरा हुआ था। इनकी संखया निजामुद्दीन के अनुसार १६००० (सोलह हजार) और फरिद्गता के अनुसार १०,००० (दस हजार) थी। इनकी देखभाल के लिये सहस्त्रों गुलाम रहे होंगे। (६९)
    दक्खन
    प्रथम बहमनी सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह (१३४७-१३५८) ने उत्तरी कर्नाटक के हिन्दू राजाओं पर आक्रमण किया। लूट में मंदिरों में नाचने वाली १००० (एक हजार) हिन्दू स्त्रियाँ हाथ आई। (६९)
    १४०६ में सुल्तान ताजुद्दीन फ़िरोज़ (१३९७-१४२२) ने विजयनगर के विरुद्ध युद्ध में वहाँ से ६०,००० (साठ हजार) किद्गाोरों और बच्चों को पकड़ कर गुलाम बनाया। द्गाांति स्थापित होने पर बुक्का राजा ने दूसरी भेंटों के अतिरिक्त गाने नाचने में निपुण २००० (दो हजार) लड़के-लड़कियाँ भेंट में दिये। (७०)
    उसका उत्तराधिकारी अहमद वली (१४२२-३६)विजयनगर को एक ओर से दूसरी ओर तक लोगों का कत्ले-आम करता, स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाता, रौंद रहा था। सभी गुलाम मुसलमान बना लिये जाते थे। (७१)
    सुल्तान अलाउद्दीन (१४३६-४८) ने अपने हरम में १००० (एक हजार) स्त्रियाँ इकट्ठी कर ली थीं।(७२)
    जब हम सोचते हैं कि बहमनी सुल्तानों और विजयनगर में लगभग १५० वर्ष तक युद्ध होता रहा तो कितने कत्ल हुये, कितनी स्त्रियाँ और बच्चे गुलाम बनाये गये और कितनों का बलात् धर्मान्तरण किया, गया उसका हिसाब लगाना कठिन हो जाता है। (७३)
    बंगाल
    ‘बंगाल के डरपोक लोगों को तलवार के बल पर १३वीं-१४वीं शताब्दी में बड़े पैमाने पर मुसलमान बनाने का श्रेय (इस्लाम के) जोशीले सिपाहियों को जाता है जिन्होंने पूर्वी सीमाओं तक घने जंगलों में पैठ कर वहाँ इस्लाम के झंडे गाड़ दिये। लोकोक्ति के अनुसार, इनमें सबसे अधिक सफल थे; आदम शहीद, शाह जलाल मौहम्मद और कर्मफरमा साहब। सिलहट के शाह जलाल द्वारा बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। इस्माइल द्गााह गाजी ने हिन्दू राजा को पराजित कर बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया (७३क) इन नामों के साथ जुड़े ‘गाजी’ (हिन्दुओंको कत्ल करने वाला) और ‘शहीद’ (धर्म युद्ध में हिन्दुओं द्वारा मारे जाने वाला) शब्द से ही उनके उत्साह का अनुमान किया जा सकता है।
    ‘१९०१ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार अनेक स्थानों पर हिन्दुओं पर भीद्गाण अत्याचार किये गये। लोकगाथाओं के अनुसार मौहम्मद इस्माइल शाह ‘गाजी’ ने हुगली के हिन्दू राजा को पराजित कर दिया और लोगों का बलात् धर्मान्तरण किया। (७४)
    इसी रिपोर्ट के अनुसार मुर्शिद कुली खाँ का नियम था कि जो भी किसान अथवा जमींदार लगान न दे सके उसको परिवार सहित मुसलमान होना पड़ता था। (७५)
  

In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM 


Tags: riots 

reality of gujrat riots

Posted by SHRI SARV BRAHMAN MAHASABHA BIKANER on Sunday, May 6, 2012 Under: BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM

गुजरात दंगे का सच
आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलाशे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी| जिसे देखो वो अपने को को जज दिखाता है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं| मै भी दंगो को गलत मानता हु क्युकी दंगे सिर्फ दर्द दे कर जाते हैं जिनको दंगो से कोई मतलब होता है उनको|

अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों? २७ फरवरी २००२ साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर| इस ट्रेन में जलने से ५७ लोगो को मौत हुई| प्रथम दृष्टया रहे वहा के १४ पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेशगिरी गोसाई जी| अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थरबाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशन की टीम पहुची तब २ लोग १०,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट  मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल|

अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए?
सवालो के  बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की  लिस्ट अभी लम्बी है|


अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया ऐसे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे....अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?

लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेटफ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई| बाकि की कहानी जिसपर बीती उसकी जुबानी| उस समय मुस्किल से १५-१६ की बच्ची की जुबानी|

ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी की माने तो ट्रेन में राम धुन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर| उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है| हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या| भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो कार सेवको को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार कड़ी भीड़ मरो-काटो के नारे लगा रही थी| एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की "मारो, काटो. लादेन ना दुश्मनों ने मारो"| साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|

अब सवाल उठता है की हिंदुवो ने सुबह ८ बजे ही दंगा क्यों नहीं शुरू किया बल्कि हिन्दू उस दिन दोपहर तक शांत बना रहा (ये बात आज तक किसी को नहीं दिखी है)| हिंदुवो ने जवाब देना चालू किया जब उनके घरो, गओंवो, मोहल्लो में वो जली और कटी फटी लाशें पहुंची| क्या ये लाशें हिंदुवो को मुसलमानों की गिफ्ट थी और हिंदुवो को शांत बैठना चाहिए था सेकुलर बन कर या शायद हाँ| हिन्दू सड़क पर उतारे २७ फ़रवरी २००२ के दोपहर से| पूरा एक दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिंदुवो या मोदी ने करना था तो २७ फ़रवरी २००२ की सुबह ८ बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने २८ फ़रवरी २००२ की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को हो गया और सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए| पर भीड़ के आगे आर्मी भी कम  पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश राव देशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षा कर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी| या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|

उसी १ मार्च २००२ को हमारे राष्ट्रीय मानवीय अधिकार (National Human Rights) वालो ने मोदी को अल्टीमेटम दिया ३ दिन में पुरे घटनाक्रम का रिपोर्ट पेश करने के लिए लेकिन कितने आश्चर्य की बात है की यही राष्ट्रीय मानवा अधिकार वाले २७ फ़रवरी २००२ और २८ फ़रवरी २००२ को गायब रहे| इन मानवा अधिकार वालो ने तो पहले दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर ये रिपोर्ट माँगा की क्या कदम उठाया गया गुजरात सरकार के द्वारा|


एक ऐसे ही सबसे बड़े घटना क्रम में दिखाए गए या कहे तो बेचे गए "गुलबर्ग सोसाइटी" के जलने की| इस गुलबर्ग सोसाइटी ने पुरे मीडिया का ध्यान अपने तरफ खिंच लिया| यहाँ एक पूर्व संसद एहसान जाफरी साहब रहते थे| ये महाशय का ना तो एक भी बयान था २७ फरवरी २००२ को और ना ही ये डरे थे उस समय तक| लेकिन जब २८ फरवरी २००२ की सुबह जब कुछ लोगो ने इनके घर को घेरा जिसमे कुछ कुछ तथाकथित मुस्लमान छुपे हुए थे, तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर गोली चलवाया अपने लोगो से जिसमे २ हिन्दू मरे और १३ हिन्दू गंभीर रूप से घायल हो गए| फिर इस घटनाक्रम के बाद जब भीड़ बढ़ने लगी इनके घर पर तो ये औथोरितिज, अपने यार-दोस्तों को फ़ोन करने लगे और तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल ४२ लोग मरे| यहाँ शायद भीड़ के आने पर ही एहसान साहब को पुलिस को फ़ोन करना चाहिए था ना की खुद के बन्दों के द्वारा गोली चलवाना चाहिए था| पर इन्होने गोली चलाने के बाद फ़ोन किया डाइरेक्टर जेनेरल ऑफ़ पुलिस को| यहाँ एक और झूट सामने आया जब अरुंधती रॉय जैसी लेखिका तक ने यहाँ तक लिख दिया की एहसान जाफरी की बेटी को नंगा करके बलात्कार के बाद मारा गया और साथ ही एहसान जाफरी को भी| पर यहाँ एहसान जाफरी के बड़े बेटे ने ही पोल खोल दी की उसके पिता की जान गई उस दिन पर उसकी बहन तो अमेरिका में रहती थी और रहती है| तो यहाँ कौन किसको झूटे केस में फंसना चाह रहा है ये क्लियर है|

अब यहाँ तक तो सही था पर गोधरा में साबरमती को कैसे इस दंगे से अलग किया जाता और हिंदुवो को इसके लिए आरोपित किया जाता इसके लिए लोग गोधरा के दंगे को ऐसे तो संभल नहीं सकते थे अपने शब्दों से, तो एक कहानी प्रकाश में आई| कहानी थी की कारसेवक गोधरा स्टेशन पर चाय पिने उतरे और चाय देने वाला जो की एक मुस्लमान था उसको पैसे नहीं दिए...बल्कि गुजराती अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं...चलिए छोडिये ये धर्मान्धो की कहानी में कभी दिखेगा ही नहीं आगे बढ़ते हैं| अब कारसेवको ने पैसा तो दिया नहीं बल्कि मुस्लमान की दाढ़ी खिंच कर उसको मारने लगे तभी उस बूढ़े मुस्लमान की बेटी जो की १६ साल की बताई गई वो आई तो कारसेवको ने उसको बोगी में खिंच कर बोगी का दरवाजा बंद कर दिया अन्दर से| और इसके प्रतिफल में मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और ५८ लोगो को मार दिया  जिन्दा जला कर या काट कर| अब अगर इस मनगढ़ंत कहानी को मान भी लें तो कई सवाल उठते हैं:-

क्या उस बूढ़े मुस्लमान चाय वाले ने रेलवे पुलिस को इत्तिला किया?
रेलवे पुलिस उस ट्रेन को वहा से जाने नहीं देती या लड़की को उतर लिया जाता|
उस बूढ़े चाय वाले ने २७ फ़रवरी २००२ को कोई ऍफ़.आइ.आर क्यों नहीं दाखिल किया?
५ मिनट में ही सैकड़ो लीटर पेट्रोल और इतनी बड़ी भीड़ आखिर जुटी कैसे?
सुबह ८ बजे सैकड़ो लीटर पेट्रोल आया कहा से?
एक भी केस २७ फ़रवरी २००२ के तारीख में मुसलमानों के द्वारा क्यों नहीं दाखिल हुआ?

अब असलियत ये सामने आयी रेलवे पुलिस की तफतीस में की उस दिन गोधरा स्टेसन पर कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं थी| ना तो चाय वाले के साथ कोई झगडा हुआ था और ना ही किसी लड़की के साथ में कोई बदतमीजी या अपहरण की घटना हुई| इसके बाद आयी नानावती रिपोर्ट में कहा गया है की जमीअत-उलमा-इ-हिंद का हाथ था उन ५८ लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने में|

दंगे में ७२० मुस्लमान मारे तो २५० हिन्दू भी मारे| मुसलमानों के मरने का सभी शोक मानते हैं चाहे वो हिन्दू हो, चाहे वो मुस्लमान हो या चाहे वो राजनेता या मीडिया हो पर दंगे में २५० मरे हुए हिंदुवो और साबरमती ट्रेन में मरे ५८ हिंदुवो को कोई नहीं पूछता है कोई बात तक नहीं करता है सभी को केवल मरे हुए मुस्लमान दीखते हैं|

एक और बात काबिले गौर है क्या किसी भी मुस्लिम लीडर का बयान आया था साबरमती ट्रेन के जलने पर?
क्या किसी मुस्लिम लीडर ने साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के लिए खेद प्रकट किया?

अब एक छोटा सा इतिहास देना चाहूँगा गोधरा के पुराने दंगो का...क्युकी २००२ की घटना पहली घटना नहीं थी गोधरा के लिए

१९४६: सद्वा रिज़वी और चुडिघर ये दोनों पाकिस्तान सपोर्टर थे ने पारसी सोलापुरी को दंगे में मारा बाद में विभाजन के बाद चुडिघर पाकिस्तान चला गया
१९४८: सद्वा रिज़वी ने ही कलेक्टर श्री पिम्पुत्कर को मरना चाहा जिसे कलेक्टर के अंगरक्षकों ने बचाया अपनी जान देकर और उसके बाद सद्वा रिज़वी पाकिस्तान भाग गया
१९४८: एक हिन्दू का गला काटा गया और करीब २००० हिन्दू घर जला दिए गए जहा ६ महीने तक कर्फ्यू चला
१९६५: पुलिस चौकी नंबर ७ के पास के हिंदुवो के घर और दुकान जला दिए गए साथ ही पुलिस स्टेशन पर भी मुसलमानों का हमला हुआ उस समय वहा के MLA कांग्रेस के थे और वो भी मुस्लमान थे
१९८०: २ हिन्दू बच्चो सहित ५ लोगो को जिन्दा जला दिया गया, ४० दुकानों को जला दिया गया, गुरूद्वारे को जला दिया गया मुसलमानों के द्वारा, यहाँ १ साल तक कर्फ्यू रहा
१९९०: ४ हिन्दू शिक्षको के साथ एक हिन्दू दर्जी को काट दिया गया
१९९२: १०० से ज्यादा घरो को जला दिया गया ताकि ये मुस्लमान उन जमीनों पर कब्ज़ा कर सकें आज वो जमीने वीरान पड़ी हैं क्युकी इनके चलते हिनू वहा से चले गए
२००२: ३ बोगियों को जला दिया गया जिसमे ५८ लोग जल कर मरे इनमे से कुछ लोग जो बचे और बहार निकलने की कोशिस किये उनको काट दिया गया
२००३: गणेश प्रतिमा के विशार्जन के समय मुसलमानों ने पत्थरबाजी की और इस खबर को रीडिफ़ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने छपा बाकि किसी ने भी नही

एक तस्वीर बेचीं जाती है गुजरात दंगे के तौर पर वो है कुतुबुद्दीन अंसारी की


पर यही मीडिया ये तस्वीरे क्यों नहीं दिखाती जो की ट्रेन जलने से मरे या कोई सेकुलर इनके बारे में नहीं बात करता है?

    


      
    मुसलमान सारी दुनिया में वास्तव में सबसे दुखी कौम है । मुसलमान कहते हैं सारी दुनिया इस्लाम को समाप्त करने की साजिश कर रही है । वे ऐसा क्यों कहते हैं वे ऐसा इसीलिए कहते हैं क्योंकि वे खुद सारी गैर मुस्लिम दुनिया को समाप्त करके सारी दुनिया को इस्लाम के हरे रंग में रंगने की तैयारी कर रहे हैं । चूंकि वे खुद सारी दुनिया के हजार वर्ष से दुश्मन बनें हैं अतः उन्हें सारी दुनिया भी मुसलमानो की दुश्मन नजर आती है । दिया । अब हथियारों का उत्तर किसी भी दुनिया में अंहिसा से नहीं दिया जा सकता अतएव भारत सरकार ने भी मजबूरी में अपनी सेना को कश्मीर में लगाना पड़ा । अब लगातार 25 वर्षों से कश्मीर भारत से केवल सेना के बल पर ही रूका हुआ है अगर आज भारत सरकार कश्मीर से सेना हटा लेती है तो निश्चित रूप से कश्मीरी मुसलमान कश्मीर का पाकिस्तान में विलय कर देंगे ये मुसलमानों की मजबूरी है । कुरान व मौहम्मद के आदेश से मुसलमान इंकार कर नहीं सकते । इसीलिए वह कश्मीरी जिसकी प्रति व्यक्ति आय आतंकवाद के शुरू होने से पहले भारत में सबसे अधिक थी आज हजारों करोड़ की मदद से दाना पानी खा रहे हैं
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    brajeshMay 4, 2012 09:40 PM

    ईरान में अविवाहित लड़की की फाँसी देने के पहले उनका बलात्कार किया जाता है..चूँकि मुसलमान धर्म के अनुसार बिना शादी-शुदा लड़की को फाँसी देने का नियम नहीं है इसलिए उस कुँवारी लड़की का जल्लाद से शादी करवाकर उसका कौमार्य तोड़ा जाता है और उसके अगले दिन फाँसी दी जाती है..यनि इनके लिए शादी का मतलब बस इतना सा ही है..यनि बस सेक्स करना..वो शादी वाली रात इतनी भयानक होती है कि लड़कियाँ फाँसी से नहीं बल्कि उस बलात्कार वाले रात से ही डरती है..कई लड़कियों को उस रात के बाद अपना चेहरा बुरी तरह नोचते देखा गया है..
    Reply
    brajeshMay 4, 2012 09:44 PM

    खिलजी वंश के पतन के पश्चात् तुगलकों-
    ग्यासुद्दीन तुगलक (१३२०-२५) मौहम्मद बिन तुगलक (१३२५-१३५१ ई.) एवं फ़िरोज शाह तुगलक(१३५१-१३८८) का राज्य आया।
    फ़िरोज तुगलक ने जब जाजनगर (उड़ीसा) पर हमला किया तो वह राज शेखर के पुत्र को पकड़ने में सफल हो गया। उसने उसको मुसलमान बनाकर उसका नाम शकर रखा।(६२)
    सुल्तान फ़िरोज तुगलक अपनी जीवनी ‘फतुहाल-ए-फिरोजशाही’ में लिखता है-’मैं प्रजा को इस्लाम स्वीकारने के लिये उत्साहित करता था। मैंने घोषणा कर दी थी कि इस्लाम स्वीकार करने वाले पर लगा जिजिया माफ़ कर दिया जायेगा।
    यह सूचना जब लोगों तक पहुँची तो लोग बड़ी संखया में मुसलमान बनने लगे। इस प्रकार आज के दिन तक वह चहुँ ओर से चले आ रहे हैं। इस्लाम ग्रहण करने पर उनका जिजिया माफ कर दिया जाता है और उन्हें खिलअत तथा दूसरी वस्तुएँ भेंट दी जाती है।(६२)
    १३६० ई. में फिरोज़शाह तुगलक ने जगन्नाथपुरी के मंदिर को ध्वस्त किया। अपनी आत्मकथा में यह सुल्तान हिन्दू प्रजा के विरुद्ध अपने अत्याचारों का वर्णन करते हुए लिखता है-’जगन्नाथ की मूर्ति तोड़ दी गयी और पृथ्वी पर फेंक कर अपमानित की गई। दूसरी मूर्ति खोद डाली गई और जगन्नाथ की मूर्ति के साथ मस्जिदों के सामने सुन्नियों के मार्ग में डाल दी गई जिससे वह मुस्लिमों के जूतों के नीचे रगड़ी जाती रहें।’(६३)
    इस सुल्तान के आदेश थे कि जिस स्थान को भी विजय किया जाये, वहाँ जो भी कैदी पकड़े जाये; उनमें से छाँटकर सर्वोत्तम सुल्तान की सेवा के लिये भेज दिये जायें। शीघ्र ही उसके पास १८०००० (एक लाख अस्सी हजार) गुलाम हो गये।(६३क)
    ‘उड़ीसा के मंदिरों को तोड़कर फिरोजशाह ने समुद्र में एक टापू पर आक्रमण किया। वहाँ जाजनगर से भागकर एक लाख शरणार्थी स्त्री-बच्चे इकट्ठे हो गये थे। इस्लाम के तलवारबाजों ने टापू को काफिरों के रक्त का प्याला बना दिया। गर्भवती स्त्रियों, बच्चों को पकड़-पकड़कर सिपाहियों का गुलाम बना दिया गया।’(६४)
    नगर कोट कांगड़ा में ज्वालामुखी मंदिर का यही हाल हुआ। फरिश्ता के अनुसार मूर्ति के टुकड़ों को गाय के गोश्त के साथ तोबड़ों में भरकर ब्राहमणों की गर्दनों से लटका दिया गया। मुखय मूर्ति बतौर विजय चिन्ह के मदीना भेज दी गई। (६८)
    Reply
    brajeshMay 4, 2012 09:45 PM

    मौहम्मद-बिन-हामिद खानी की पुस्तक ‘तारीखे मौहमदी’ के अनुसार फीरोज तुगलक के पुत्र नसीरुद्दीन महमूद ने राम सुमेर पर आक्रमण करते समय सोचा कि यदि मैं सेना को सीधे-सीधे आक्रमण के आदेश दे दूँगा तो सैनिक क्षेत्र में एक भी हिन्दू को जीवित नहीं छोड़ेंगे। यदिमैं धीरे-धीरे आगे बढूँगा तो कदाचित वे इस्लाम स्वीकार करने को राजी हो जायेंगे। (६६)
    मालवा में १४५४ ई. में सुल्तान महमूद ने हाड़ा राजपूतों पर आक्रमण किया तो उसने अनेकों का वध कर दिया और उनके परिवारों को गुलाम बनाकर माँडू भेज दिया। (६७)
    ग्सासुद्दीन (१४६९-१५००) का हरम हिन्दू जमींदारों और राजाओं की सुंदर गुलाम पुत्रियों से भरा हुआ था। इनकी संखया निजामुद्दीन के अनुसार १६००० (सोलह हजार) और फरिद्गता के अनुसार १०,००० (दस हजार) थी। इनकी देखभाल के लिये सहस्त्रों गुलाम रहे होंगे। (६९)
    दक्खन
    प्रथम बहमनी सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह (१३४७-१३५८) ने उत्तरी कर्नाटक के हिन्दू राजाओं पर आक्रमण किया। लूट में मंदिरों में नाचने वाली १००० (एक हजार) हिन्दू स्त्रियाँ हाथ आई। (६९)
    १४०६ में सुल्तान ताजुद्दीन फ़िरोज़ (१३९७-१४२२) ने विजयनगर के विरुद्ध युद्ध में वहाँ से ६०,००० (साठ हजार) किद्गाोरों और बच्चों को पकड़ कर गुलाम बनाया। द्गाांति स्थापित होने पर बुक्का राजा ने दूसरी भेंटों के अतिरिक्त गाने नाचने में निपुण २००० (दो हजार) लड़के-लड़कियाँ भेंट में दिये। (७०)
    उसका उत्तराधिकारी अहमद वली (१४२२-३६)विजयनगर को एक ओर से दूसरी ओर तक लोगों का कत्ले-आम करता, स्त्रियों और बच्चों को गुलाम बनाता, रौंद रहा था। सभी गुलाम मुसलमान बना लिये जाते थे। (७१)
    सुल्तान अलाउद्दीन (१४३६-४८) ने अपने हरम में १००० (एक हजार) स्त्रियाँ इकट्ठी कर ली थीं।(७२)
    जब हम सोचते हैं कि बहमनी सुल्तानों और विजयनगर में लगभग १५० वर्ष तक युद्ध होता रहा तो कितने कत्ल हुये, कितनी स्त्रियाँ और बच्चे गुलाम बनाये गये और कितनों का बलात् धर्मान्तरण किया, गया उसका हिसाब लगाना कठिन हो जाता है। (७३)
    बंगाल
    ‘बंगाल के डरपोक लोगों को तलवार के बल पर १३वीं-१४वीं शताब्दी में बड़े पैमाने पर मुसलमान बनाने का श्रेय (इस्लाम के) जोशीले सिपाहियों को जाता है जिन्होंने पूर्वी सीमाओं तक घने जंगलों में पैठ कर वहाँ इस्लाम के झंडे गाड़ दिये। लोकोक्ति के अनुसार, इनमें सबसे अधिक सफल थे; आदम शहीद, शाह जलाल मौहम्मद और कर्मफरमा साहब। सिलहट के शाह जलाल द्वारा बड़े पैमाने पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। इस्माइल द्गााह गाजी ने हिन्दू राजा को पराजित कर बड़ी संखया में हिन्दुओं का धर्मान्तरण किया (७३क) इन नामों के साथ जुड़े ‘गाजी’ (हिन्दुओंको कत्ल करने वाला) और ‘शहीद’ (धर्म युद्ध में हिन्दुओं द्वारा मारे जाने वाला) शब्द से ही उनके उत्साह का अनुमान किया जा सकता है।
    ‘१९०१ की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार अनेक स्थानों पर हिन्दुओं पर भीद्गाण अत्याचार किये गये। लोकगाथाओं के अनुसार मौहम्मद इस्माइल शाह ‘गाजी’ ने हुगली के हिन्दू राजा को पराजित कर दिया और लोगों का बलात् धर्मान्तरण किया। (७४)
    इसी रिपोर्ट के अनुसार मुर्शिद कुली खाँ का नियम था कि जो भी किसान अथवा जमींदार लगान न दे सके उसको परिवार सहित मुसलमान होना पड़ता था। (७५)
  

In : BRAHMAN, MAHASABHA,BIKANER BHAGWAN PARSHURAM 


Tags: riots 

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